देहरादून: सरकार ने वन विभाग के अधिकारियों को एक झटके में बदल डाला। वन विभाग के मुखिया तक को बदल दिया गया। इन तबादलों को सरकार का बड़ा एक्शन माना जा रहा था, लेकिन अब इन पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
जिन अधिकारियों के तबादले हुए, उनमें कुछ दागी अधिकारी भी शामिल हैं, उनको फिर भी अच्छी पोस्टिंग मिल गई। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि कॉर्बेट पार्क के निदेशक राहुल कुमार की कुर्सी कैसे बच गई? ऐसा क्या खेल हुआ कि निदेशक अब भी अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं।
सरकार की इस कार्रवाई को नेशनल बाघ प्राधिकरण और सरकार के एक्शन के तौर पर पेश किया गया। मीडिया में भी ऐसी ही खबरें तैरी कि वन विभाग के मुखिया राजीव भरतरी को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के भीतर हुए गड़बड़ियों का खामियाजा भुगतना पड़ा है।
तबादलों को पिछले दिनों पार्क में निर्माण को ध्वस्त किए जाने से भी जोड़ा जा रहा है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि अगर यह कार्रवाई गड़बड़ी को लेकर हुई है तो वन विभाग के मुखिया और डीएफओ पर ही कार्रवाई क्यों की गई ? इस मामले में पार्क निदेश राहुल कुमार भी सवालों के घरे में थे, फिर उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
सवाल यह भी हैं कि इसी तबादला सूची में कुछ अफसर ऐसे भी हैं, जिनको कार्रवाई के तहत हटाया जाना बताया गया है। लेकिन, गंभीर आरोपों से घिरे अशोक गुप्ता को शिवालिक वृत्त का संरक्षक और डी.थिरूज्ञानसंबदन को हरिद्वार का डीएफओ बनाया गया। बार-बार यही प्रश्न उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि दो अधिकारियों को कार्रवाई के बाद अच्छी पोस्टें दी गई और पार्क निदेशक अब भी अपनी कुर्सी पर टिककर बैठे हैं?
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