देहरादून। आपदा प्रबंधन विभाग से भ्रष्टाचार का अनोखा मामला सामने आया है जिससे उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मच गई है। चुनाव से पहले एक बार फिर से भाजपा सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। भ्रष्टाचार पर चोट करने का दावा करने वाली सरकार के लिए भी झटका देने वाली है। आपको बता दें कि ये मामला उत्तराखण्ड में अब तक के भ्रष्टाचार के अन्य मामलों से बिल्कुल अलग और बहुत ही गंभीर मामला है। मामले की गंभीरता को देखते हुए आपदा प्रबंधन मंत्री धन सिंह रावत ने 21 अक्टूबर 2021 को इस मामले में जांच के आदेश दिये थे. इस मामले को लेकर आपदा प्रबंधन सचिव  एस०ऐ० मुरुगेशन को कई बार फोन किया गया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। वहीं अन्य अधिकारी इससे अनजान हैं और मौन हैं।

अधिकारियों के संज्ञान में नहीं मामला

आपको बता दें कि अपर सचिव आपदा प्रबंधन जितेंद्र सोनकर से 9 नवंबर 2021 को फोन पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में यह मामला नहीं है। 21 अक्टूबर 2021 को आपदा प्रबंधन मंत्री धन सिंह रावत ने जांच के आदेश किये हैं और 20 दिन बीत जाने के बाद भी विभागीय अधिकारियों के संज्ञान में यह मामला नहीं है तो फिर जांच कैसे होगी। जांच न करके सम्भवतः आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन क्यों।

7 संविदा कार्मिकों को सेवा में कार्यरत रहते हुए 32 लाख रुपय की ग्रेच्यूटी दी गयी

आपदा प्रबंधन विभाग के अंतर्गत संचालित आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र में 7 संविदा कार्मिकों को सेवा में कार्यरत रहते हुए 32 लाख रुपय की ग्रेच्यूटी दी गयी है। इनको यह ग्रेच्यूटी जून 2016 से वर्ष 2019 तक प्रत्येक वर्ष दी गयी है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि ग्रेच्यूटी के ये 32 लाख रुपये सरकारी बजट से 2 संविदा कार्मिको डॉ० पीयूष रौतेला, अधिशासी निदेशक और डॉ० के.एन. पांडे, वित्त अधिकारी ने अपने स्तर से स्वीकृत किये और स्वयं को मिलाकर 5 अन्य संविदा कार्मिकों को ग्रेच्यूटी देने के लिए 32 लाख रुपये का आहरण कर दिया। डॉ० पीयूष रौतेला वर्तमान में एक अन्य मामले में निलंबित है और डॉ० के.एन. पांडे की जून 2020 में सेवा समाप्त हो गयी थी।

केवल 7 संविदा कार्मिकों को चुपचाप ग्रेच्यूटी दे दी गयी. अब इस मामले का खुलासा होने पर विभाग के अन्य संविदा कार्मिकों के द्वारा भी ग्रेच्यूटी की मांग की जा रही है, जो कि स्वाभाविक है और सही भी है। लेकिन इस प्रकरण पर गौर करें तो यह ग्रेच्यूटी लेने का प्रकरण नहीं है बल्कि सरकारी धन से 32 लाख रुपये के गबन का मामला है, इसलिये आपदा प्रबंधन मंत्री ने जांच के आदेश किये हैं। गबन के दोषी पाये जाने पर इसमें भारतीय दंड संहिता के धारा 403, 409 और 420 के तहत दोषियों पर कार्यवाही किये जाने का प्रावधान है।

विषय विशेषज्ञों के अनुसार यह गबन का ही प्रकरण है इसके लिये निम्न बिंदुओं पर गौर करना आवश्यक है

1- दो संविदा कर्मचारियों ने स्वयं के स्तर पर ग्रेच्यूटी स्वीकृत की और 5 अन्य संविदा कार्मिकों के साथ स्वयं भी ग्रेच्यूटी ली है जो कि वित्तीय नियमों के विरुद्ध है।
2- यदि 7 संविदा कार्मिकों को सेवारत रहते हुऐ ग्रेच्यूटी दी गयी तो फिर विभाग के अन्य संविदा कार्मिकों को क्यों नहीं दी गयी।
3- ग्रेच्यूटी लेने के लिये किसी भी उच्च अधिकारी की अनुमति नहीं ली गयी जबकि इसमें अधिशासी मंडल और शासी निकाय में प्रस्ताव लाकर सचिव आपदा प्रबंधन, मुख्य सचिव व शासी निकाय के सदस्यों का अनुमोदन लेना आवश्यक था। बिना अनुमति के सरकारी धन आहरित किया गया जो कि वित्तीय नियमों के विरुद्ध है।
4- दो संविदा कर्मचारियों ने 32 लाख रुपये का आहरण कैसे कर लिया। इतनी बड़ी धनराशि के आहरण के वित्तीय अधिकार इन्हें कैसे प्राप्त हुये। संविदा कार्मिकों को वित्तीय आहरण के अधिकार देना वित्तीय नियमों के विरुद्ध है।
5- संविदा कार्मिकों को ग्रेच्यूटी किस नियम के अनुसार दी गयी। ग्रेच्यूटी तो नियमित कार्मिकों को दी जाती है।
6- सेवा में रहते हुऐ ग्रेच्यूटी कैसे दे दी गई। ग्रेच्यूटी तो सेवानिवृत होने पर दी जाती है।
7- जून 2016 से वर्ष 2019 तक प्रत्येक वर्ष ग्रेच्यूटी किस नियम के आधार पर दी गयी।
8- ग्रेच्यूटी देने के लिऐ SBI सचिवालय शाखा में बनाई गई Fixed deposite का आहरण किया गया। वित्तीय नियमों के अनुसार बिना अनुमति के सरकारी धन से न तो fixed deposite किया जा सकता है और न ही उसका आहरण किया जा सकता है लेकिन इस प्रकरण में 2 संविदा कार्मिकों द्वारा बिना अनुमति के आहरण किया गया है।
9- यदि इन संविदा कार्मिकों ने नियमानुसार ग्रेच्यूटी ली है तो फिर विभाग के अन्य संविदा कार्मिकों को भी ग्रेच्यूटी दी जानी चाहिये।
10- इस प्रकार के प्रकरणों में आरोप सिद्ध होने पर वित्तीय नियमों के अनुसार आरोपियों से ब्याज सहित पूरी धनराशि की रिकवरी की जाती है तथा भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अनुसार दंडात्मक कार्यवाही की जाती है।
अब देखते हैं विभागीय मंत्री के आदेश पर विभागीय अधिकारी जांच करते हैं या आरोपियों को बचाने की कवायद करते हैं।

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