देहरादून: 2022 की बिसात बिछली शुरू हो गई है। हार-जीत का गणित लगातार उम्मीदवरों के चयन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। चुनाव प्रचार का पूरा रोडमैप भी बनाया जा चुका है। उत्तराखंड में सियासत और मिथक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसा मिथक गंगोत्री विधानसभा सीट से भी जुड़ा हुआ है। ऐसा मिथक जो आज तक नहीं टूट पाया है। दरअसल, गंगोत्री सीट से जिस भी दल का विधायक जीतता है राज्य में सत्ता उसी दल को मिलती है।

हालांकि, राजनीतिक दल इससे इंकार करते हैं, लेकिन अब तक जो हुआ। इस सीट का जो इतिहास है। वह, तो यही बताता है कि मिथक हर बार सही साबित हुआ है। कोई इसे तोड़ नहीं पाया है। यह मिथक पिछले 70 सालों से बरकरार है.. अब इस मिथक को एक संयोग कहें या फिर कुछ और मगर यह सच है कि देश के आजाद होने के बाद इस मिथक की शुरुआत हुई जो अब तक नहीं टूटा है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाने पर पता चलता है कि वास्तव में यह ऐसा मिथक है, जिसे राजनीति दल चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।

एक नजर में गंगोत्री का हाल

  • 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ।
  • गंगोत्री सीट से कांग्रेस प्रत्याशी विजयपाल सजवाण की हुई थी जीत। 2002 में कांग्रेस सत्ता में आई।
  • 2007 में भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता। फिर भाजपा की सरकार बनी।
  • 2012 में विजयपाल सजवाण ने कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीता और फिर सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार।
  • 2017 में भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता। भाजपा ने प्रचंज बहुमत से जीत हासिल की।

2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी गोपाल सिंह रावत ने चुनाव जीता और भाजपा सत्ता में आई। हालांकि वर्तमान विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन के बाद से गंगोत्री विधानसभा सीट खाली पड़ी है। 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के साथ तमाम राजनीतिक दल चुनाव जीतने का प्रयास कर रहे है। चुनाव परिणामों के साथ नजर इस मिथक पर भी रहेगी। क्या यह टूट पाएगा या नहीं।

The post उत्तराखंड: क्या इस बार होगा, जो आज तक नहीं हुआ, अब तक बरकरार है ये मिथक first appeared on Khabar Uttarakhand News.





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