पौड़ी गढ़वाल : उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ी समस्या और सबसे बड़ी विडंबना है। गांव के गांव खाली हो गए हैं और हो भी रहे हैं। गांववासी शहर का रुख करने लगे हैं। गांव से अपना सामान बोरिया बिस्तर लेकर कोई नौकरी की तलाश में तो कोई पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं. कई गांव तो उत्तराखंड में ऐसे हैं जहां कोई रहना ही नहीं है और उन गांवो को घोस्ट विलेज घोषित किया जा चुका है। कई सरकारें आई और गई और हर कोई पलायन रोकने का दावा कर गई लेकिन फिर भी गांव के गांव खाली होने से कोई सरकार ना रोक सकी। आपको बता दें कि कई गांव ऐसे हैं जहां सिर्फ बुुजुर्ग रह गए हैं तो एक गांव उत्तराखंड में ऐसा भी है जहां सिर्फ तीन बुजुर्ग महिलाएं हैं जो एक दूसरे के सहारे दिन काट रहे हैं।

 

जी हां हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल की जहां सीडीएस बिपिन रावत से लेकर कई सीएम रह चुके हैं लेकिन फिर भी इस जिले से कोई भी पलायन रोकने में कामयाब नहीं हुआ। सीडीएस बिपिन रावत रिटायरमेंट के बाद गांव में ही बसना चाहते थे लेकिन उनका इसी महीने दिसंबर में विमान हादसे में निधन हो गया। पौड़ी के हिस्से पलायन के अलावा के कुछ नहीं आया है। कई गांव में एक एवं दो परिवार बच गए हैं तो कई गांव या तो युवा विहीन हो चले हैं या फिर पुरुष विहीन हो गए हैं। आज हम आपको पौड़ी गढ़वाल के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर केवल तीन बुजुर्ग महिला रह गई हैं। गांव सूना पड़ गया है।

आज हम आपको पौड़ी के एक गांव में बारे में बताने जा रहे हैं जहां सिर्फ तीन महिलाएं रहती हैं. वहां ना तो सड़क है और ना ही कोई सुख सुविधा सिर्फ है तो वो है भालू का आतंक। आपको बता दें कि विकास खंड एकेश्वर की ग्रामसभा सालकोट के गड़ोली टल्ली गांव में अब केवल तीन बुजुर्ग महिला ही रहती हैं। विकास यहां से कोसो दूर है। ग्राम सभा से 25 किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थित है। सड़क तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। गांव में बचीं तीनों महिलाओं का कहना है कि गांव में रौनक नहीं है। सब शहर का रुख कर चुके हैं। तीनों एक दूसरे के सहारे दिन काट रहे हैं। गांव में जंगली जानवरों का आतंक छाया हुआ है। तीनों डर के साए में जी रही हैं।

उनका कहना है कि अगर उनके गांव में सड़क और नौकरी होती तो शायद लोग गांव छोड़कर नहीं जाते। महिलाओं का कहना है कि गांव में पसरा सन्नाटा उनको अच्छा नहीं लगता लेकिन पहाड़ की जीवन मुश्किल है। तबीयत बिगड़ने पर ग्राम प्रधान ही इमरजेंसी में उनको दवाई इत्यादि देते हैं। आपको बता दें कि पौड़ी के सालकोट ग्राम सभा में 5 गांव आते हैं। पहला सालकोट जिसमे 7 परिवार रहते हैं और 25 जनसंख्या है। दूसरा गडोली मल्ली जिसमें 3 परिवार और 6 लोग रहते हैं। तीसरा गडोली टल्ली जहां महज 3 परिवार रहते हैं और केवल 3 बुजुर्ग महिलाएं गांव में रहती हैं।

पर्यटकों को पहाड़ की वादियां तो भाएगी लेकिन वहां का डरावना अंधकार उन्हें डराएगा

वहीं वीरों मल्ला में 6 परिवार एवं 15 लोग और वीरों तल्ला में 4 परिवार एवं 13 लोग रहते हैं। यानी कुल मिला कर पूरी ग्राम सभा में 23 परिवार है और टोटल जनसंख्या 62 है। विकास की बात सभी करते हैं…सरकार को इस ओऱ ध्यान देने की जरुरत है वरना एक दिन ऐसा आएगा पहाड़ में कोई ना मकान दिखेगा और ना ही इंसान। शहरों में दबाव बढ़ जाएगा और फिर पहाड़ों की रौनक खत्म हो जाएगा। पर्यटकों को पहाड़ की वादियां तो भाएगी लेकिन वहां का डरावना अंधकार उन्हें डराएगा। सताएगा और वो वहा नहीं आएंगे। सरकार को इस मामले में गंभीर होने की जरुरत है। सरकार आएगी जाएगी लेकिन अगर गांव मकान खाली हो गए तो वहां चहकने के लिए बच्चे बुजुर्ग नहीं आएंगे।

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