देहरादून: उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से ही अलग हुआ राज्य है। इस लिहाज से यूपी का उत्तराखंड पर असर नजर आ ही जाता है। कुछ ऐसा ही असर 2022 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आ सकता है। कांग्रेस राज्य में दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम करती नजर आई। पूर्व सीएम हरीश रावत का दलित सीएम बनते देखने का बयान भी इसी रणनीति का हिस्सा माना गया।

उसका असर भी नजर आया। भाजपा सरकार में लगभग साढ़े चार साल रहने के बाद राज्य में बड़े दलित चेहरे यशपाल आर्य ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली। उनके बेटे संजीव आर्य भी वापस कांग्रेस में लौट गए। भाजपा कितने ही दावे करे, लेकिन यशपाल आर्य के जाने से दलित वोट बैंक पर बड़ा असर पड़ सकता है।

यूपी की सियासत में पिछले दो दिनों से हलचल मची हुई है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा को अलविदा कह दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य ने जो आरोप लगाए वो बेहद गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि योगी सरकार में दिलतों की सुनवाई नहीं हो रही थी। आज एक और मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने भी सरकार पर दलितों और पिछड़ों की अनदेखी करने के आरोप लगाए।

दलित नेताओं के पार्टी छोड़ने का असर दलित वोट बैंक पर पड़ना तय माना जा रहा है। चाहे उत्तराखंड में यशपाल आर्य का कांग्रेस में वापसी का मसला हो या फिर यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ने की बात हो। दोनों ही राज्यों में भाजपा को दलित वोट बैंक को बचाए रखना मुश्किल होगा।

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