महाराष्ट्र में हो रहे सियासी घटनाक्रम ने एक बार फिर से उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के दौरान हुए सियासी घटनाक्रम की यादें ताजा कर दी हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र में शिवसेना के विधायकों ने बगावत की है ठीक उसी तरह हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के दस विधायकों ने बगावत का झंडा उठा लिया था।

हालात ये हुए कि राज्य में सियासी संकट पैदा हो गया और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ गया। बाद में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद फिर एक बार हरीश रावत ने शपथ और मुख्यमंत्री बने। उस वक्त भी बीजेपी ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाई थी।

 

ऐसे हुई थी टूट

ये वाक्या 18 मार्च 2016 का है। हरीश रावत सरकार अपना बजट सदन में रख रही थी। शाम के करीब चार बजे का समय था। इसी बीच उस वक्त के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने सदन में हंगामा शुरु कर दिया। उन्होंने अपनी ही सरकार के अल्पमत में होने की बात कह दी। इसी बीच विपक्ष में बैठी बीजेपी के विधायकों ने हंगामा शुरु किया और विधानसभा अध्यक्ष से सरकार को बहुमत साबित करने का निर्देश देने की मांग की। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में बजट को पास कर दिया और सदन स्थगित कर दिया। इसके बाद हरक सिंह रावत के साथ ही कई अन्य कांग्रेस नेता सदन में ही रुके रहे। वहां ताला लगा दिया गया। रात तकरीबन दस बजे के आसपास सभी कांग्रेस के बागी विधायक और बीजेपी के नेता बसों में सवार होकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। इसके बाद सभी रातों रात चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

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हरीश रावत ने बीजेपी पर सरकार गिराने के लिए खरीद फरोख्त का आरोप लगाया था। उस वक्त कांग्रेस के विधायक गणेश गोदियाल ने बीजेपी के जरिए पांच करोड़ का ऑफर दिए जाने का आरोप भी लगाया था।

 

अब हरक फिर से कांग्रेसी

 2016 में बीजेपी का दामन थाम चुके हरक सिंह रावत ने 2017 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत कर आए। इसके बाद वो पांच साल कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद हालिया चुनाव से पहले उन्होंने फिर से कांग्रेस में वापसी कर ली। वहीं उस वक्त कांग्रेस छोड़ने वाले यशपाल आर्य भी कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं।

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