UKSSSC SCAMउत्तराखंड में UKSSSC पेपर लीक मामला इन दिनों चर्चा में है। हालांकि UKSSSC पर उठ रहे सवाल कोई नए नहीं हैं। उत्तराखंड अधिनस्थ चयन आयोग बहुत पहले से ही विवादों में रहा है। हालात ये रहे कि पुष्कर सिंह धामी के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री हरीश रावत के दौर पर में ये आयोग विवादों के साए में रहा लेकिन दोनों ही मुख्यमंत्री इन विवादों से मुंह मोड़े रहे और गंभीरता से जांच नहीं कराई। इसका नतीजा ये हुआ कि राज्य में नकल माफिया न सिर्फ बेलगाम हुआ बल्कि उसकी जड़े भी गहरी हो गईं।

अपनी सरकार को जीरो टॉलरेंस की सरकार बताकर प्रचारित करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दौर में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला हुआ। इस दौर में सरकार की छवि ऐसी बनाई गई थी कि मानों अगर यूपी की सीमा पर भी भ्रष्टाचार दिख जाए तो उसका वहीं इंकाउंटर कर दिया जाएगा। लोगों को उम्मीद थी कि फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले में भी यही होगा। जिस जज्बे से सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक महिला टीचर को जनता दरबार से धक्के मरवा कर निकलवा दिया था उसी तरह से भर्ती घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी और दोषियों को धक्के मारकर जेल की सलाखों के भीतर भेज दिया जाएगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा।

जिसका नाम आया वो भाजपाई निकला

इस मामले में जिस शख्स का नाम आया एक तो वो भाजपाई निकला और दूसरा वो मुख्यमंत्री का करीबी भी। बात हाकम सिंह की हो रही है। हाकम की पीठ थपथपाते तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की कई तस्वीरें आपको सोशल मीडिया पर तैरती मिल जाएंगी। अब इन तस्वीरों को देखकर दावे के साथ ये तो नहीं कहा जा सकता है कि हाकम के कारनामों की खबर त्रिवेंद्र को रही होगी लेकिन हालात और परिणाम देखकर ये जरूर कहा जा सकता है कि हाकम को लेकर सरकारी स्तर पर वो गंभीरता नहीं दिखी जो दिखनी चाहिए थी।

 

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त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ हाकम की नजदीकियां

दिलचस्प ये भी है कि ये मामला कोर्ट में हैरतअंगेज तरीके से गिर गया। खबरों के मुताबिक दरअसल इस मामले में परीक्षा कराने वाली आउटसोर्स कंपनी और नकल करते पकड़े गए व्यक्ति के बीच समझौता हो गया और पुलिस देखती रही। ये केस स्टेट ने लड़ा नहीं और हाकम का नाम एफआईआर से भी हटा दिया गया।

लोग अब चर्चा कर रहें हैं कि अगर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्यमंत्री गंभीरता दिखाते हुए इस घोटाले की जांच कराई होती तो शायद आज ये दिन न देखना पड़ता और बहुत पहले ही इस मर्ज का इलाज हो गया होता। लेकिन अफसोस कि अब ये सिर्फ चर्चा ही हो सकती है।

हरीश रावत सरकार में भी उठी आवाज

वैसे त्रिवेंद्र सिंह रावत से पहले हरीश रावत सरकार में भी आयोग की कार्यशैली सवालों के घेरे में रही है। हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में हुई ग्राम पंचायत विकास अधिकारी यानी वीपीडीओ परीक्षा हैरतअंगेज तरीके से कठघरे में आई। 6 मार्च 2016 को हुई इस परीक्षा के ओएमआर शीट के पहले ही लीक हो जाने और उसको पहले ही भर लेने की खबरें आईं। उस वक्त चयन आयोग के अध्यक्ष के तौर पर आरबीएस रावत कुर्सी संभाल रहे थे। हंगामा मचा, आयोग के पूर्व सदस्यों ने मोर्चा खोला, बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई, ओएमआर शीट कई दिनों तक गायब रखने और फिर उसमें छेड़छाड़ कर रिजल्ट घोषित करने के आरोप उछाले गए लेकिन हुआ कुछ नहीं। आरबीएस रावत ने इस्तीफा दे दिया और बतौर सीएम हरीश रावत ने तीन सदस्यों की एक कमेटी बना दी। कमेटी ने सरकार को क्लीन चिट दे दी लेकिन वो नकल माफिया के नेटवर्क तक नहीं पहुंच पाई।

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हरीश रावत और आयोग के चेयरमैन रहे आरबीएस रावत की एक पुरानी फोटो

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आपको बता दें कि इसी परीक्षा में एक ही गांव के बीस बच्चे जब पास हुए तो लोगों को शक हुआ और हंगामे के बाद मामला कोर्ट में गया, कोर्ट ने फिर से परीक्षा कराने के आदेश दिए और बस मामला रफा दफा हो गया।

2016 से लेकर 2022 तक के इस दौर में कई बार ऐसे मौके आए जब स्पष्ट तौर पर ये संकेत मिले कि चयन आयोग की परिक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधली हो रही है। इस बात के भी संकेत मिलते रहे कि नकल माफिया की पैठ सफेदपोशों से लेकर अधिकारियों के बीच तक गहरी है। रसूखदारों के हाथ में नेटवर्क की कमान है और पूरे पहाड़ में युवाओं को भविष्ट लाखों में बेचा जा रहा है लेकिन हैरत देखिए कि किसी मुख्यमंत्री का इतना साहस नहीं हुआ कि इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए प्रतिबद्धता दिखा सकें।

धामी ने दिखाया साहस

हालांकि मौजूदा वक्त में ये साहस पुष्कर सिंह धामी ने दिखाया है। भले ही इससे भर्ती प्रक्रियाओं में विलंब की आशंका हो सकती है लेकिन ये तसल्ली की जा सकती है कि नकल माफिया आयोग की भर्तियों की बोली नहीं लगा पाएगा। युवाओं का भविष्य सुरक्षित होगा और परिक्षाओं में पारदर्शिता आएगी।

देखना ये भी होगा शुरुआती दौर में भले ही एक दो बड़ी ‘मछलियां’ एसटीएफ ने पकड़ ली है लेकिन ‘मगरमच्छों’ के शिकंजे में लेने से एसटीएफ कितनी कामयाब हो पाती है। फिर जब जांच पिछली परिक्षाओं की भी हो रही है तो क्या कुछ पिछले रसूखदार भी इस जांच के दाएरे में आएंगे या फिर ‘राजनीतिक कर्टसी’ के तहत उन्हे ‘फ्री पैसेज’ दे दिया जाता है।

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2 comments:

  1. Two eyewitnesses, currently residing in Lucknow and former employees of the company managing the OMR sheets, provide statements that seem coerced and forcefully written. Beyond that, they lack solid evidence against Mr. RBS Rawat. Fearing the 2024 elections, the state is making efforts to keep him in jail without substantial proof. Despite being a 70-year-old retired IFS officer, he has been denied bail for over 14 months. In India, we witness builders and corrupt ministers easily obtaining bail, and in our country, an honest man is framed without hard evidence. Higher authority figures make these individuals suffer. No wonder we have prominent scamsters running free like Nirav Modi, etc., because higher bureaucrats were bribed. It's clear that honest living isn't easily achievable in a country like India, right?

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  2. Above comment is by Kritika - Proud Indian Daughter of honest man who has been wrongly accused and made scapegoat by higher authority as usual to safeguard their position & show their power! Show off your power by actually doing right things , don’t try to find scapegoat to justify your position!

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