IIT Roorkee के एक पूर्व सहायक प्रोफेसर को फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी पाने का दोषी पाया गया है। इस पूर्व सहायक प्रोफेसर को सीबीआई कि विशेष अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई है।

मामला वर्ष 2000 का है। आईआईटी रुड़की में सहायक प्रोफेसर पद के लिए नियुक्ति का विज्ञापन निकला। विकास पुलुथी ने इस नियुक्ति प्रक्रिया में पिछड़ी जाति का होने का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी हासिल कर ली। इसके बाद 2003 में भी आईआईटी में जनरल कोटे में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती निकली। उन्होंने 27 अक्तूबर 2003 को इसमें भी नौकरी हासिल कर ली। इस प्रक्रिया में भी पिछड़ी जाति का फर्जी प्रमाणपत्र लगाया।

कुछ सालों बाद विकास पुलुथी के खिलाफ फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी पाने का मामला सामने आया। सामान्य जाति से आने वाले विकास पर पिछड़ी जाति का फर्जी प्रमाणपत्र बनाकर नौकरी पाने का आरोप लगा। इसके बाद 29 सितंबर 2014 को विकास पुलुथी के खिलाफ प्राथमिक जांच शुरू की गई।

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सीबीआई ने 29 फरवरी 2015 को विकास के खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने के आरोप में मुकदमा दर्ज कर लिया। सीबीआई ने विवेचना के बाद 29 फरवरी 2016 को चार्जशीट दाखिल की। इस पर कोर्ट ने तीन मार्च 2016 को संज्ञान लिया और 17 फरवरी 2017 को आरोप तय किए गए।

विकास के खिलाफ सीबीआई कोर्ट में ट्रायल चला और इसमें सीबीआई की ओर से 17 गवाह पेश किए गए। बचाव पक्ष की ओर से एक भी गवाह पेश नहीं किया गया। इसके आधार पर स्पेशल सीबीआई मजिस्ट्रेट संजय सिंह की अदालत ने विकास पुलुथी को तीन साल कैद और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनायी है।

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