देहरादून में नदियों के किनारे अतिक्रमणबनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर हुए अतिक्रमण को लेकर पूरे प्रदेश और अब देश में भी चर्चा होने लगी है। ये मामला हाईकोर्ट से होता हुआ अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है और उधर रेलवे के अधिकारी भी। लेकिन इस सबके बीच बड़ा सवाल ये भी है कि जब रेलवे अपनी जमीन से अतिक्रमण हटा सकता है तो फिर राज्य सरकार नदियों की भूमि पर हुए अतिक्रमण को क्यों नहीं ध्वस्त कर सकती है?

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून पिछले कुछ सालों में अपनी शांत वादियों से अधिक यहां बेहद तेजी से बसी मलिन बस्तियों को लेकर चर्चाओं में रही है। देहरादून शहर से बीच से होकर बहने वाली दो सदानीरा नदियों को अतिक्रमणकारियों ने गंदा नाला बना दिया और सरकारें चुप्पी ओढ़ें रहीं।

हालात ये हुए रिस्पना जो वास्तव में ऋषिपर्णा नदी है अब अपना अस्तित्व खोने के कगार पर है। बिंदाल जैसी नदी इंसानी मलमूत्र ढोने के लिए मजबूर है।

हरीश रावत सरकार में रिस्पना को रिवाइव करने की सोच आई और त्रिवेंद्र सरकार में ऋषिपर्णा नदी को लेकर कार्ययोजना बनी और काम शुरु भी हुआ लेकिन सरकार का मुखिया बदला तो प्राथमिकता बदली और अब ऋषिपर्णा को नाले से वापस नदी के स्वरूप में लाने की कवायद सुस्त हो गई है।

देहरादून के बाहरी इलाकों और आसपास नदियां खो गईं

न सिर्फ देहरादून शहर बल्कि इसके बाहरी इलाके मसलन सहस्त्रधारा, आमवाला, पुरकुल जैसे इलाकों में भी नदियों और गदेरों पर बेतहाशा अतिक्रमण हो रहें हैं। ये सिलसिला विकासनगर से डोईवाला तक जा पहुंचा है।

शासन की सुस्ती और भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत ने राजधानी में नदियों, नालों और वन भूमि तक को भूमाफिया के हाथ में दे दिया है।

हाईकोर्ट में गया मामला

देहरादून और आसपास के इलाकों में नदियों के किनारे हुए अतिक्रमण को लेकर उर्मिला थापा के जरिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई। इस याचिका में बताया गया कि देहरादून में लगभग 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ के आसपास नदियों की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। एक तरह से देखें तो ये 203 फुटबॉल ग्राउंड के बराबर की भूमि है।

राजनीति की दुकान हैं मलिन बस्तियां

भले ही नदियों के किनारे अतिक्रमण कर मलिन बस्तियां बसा ली गईं लेकिन ये बस्तियां अतिक्रमण कम और जब राजनीति की दुकान अधिक हो जाए तो इन्हे हटाना मुश्किल हो जाता है। देहरादून में भी कुछ ऐसा ही हुआ। देहरादून में बड़े पैमाने पर नदियों के किनारे की जमीन पर मलिन बस्तियां बसाईं गईं या यूं कहें कि बसवाई गईं। बेतरतीब बसी इन बस्तियों में राजनीतिक दुकाने अपनी अपनी सहूलियत से चलती रहीं हैं। इन इलाकों से चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि इन बस्तियों के वोट बैंक को बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। उन्हें इस बात से सरोकार नहीं होता कि ये बस्तियां नदियों के सीने पर एक जख्म के समान हैं।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

देहरादून में नदियों के किनारे किए गए अतिक्रमण को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की। तीन सितंबर 2022 को प्रकाशित LiveLaw.in की एक रिपोर्ट बता रही है कि हाईकोर्ट ने क्या टिप्पणी की। चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ कहती है कि, “हम वन भूमि, जलमार्ग और सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में राज्य में प्रचलित वर्तमान स्थिति को देखकर निराश हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सभी के लिए नि: शुल्क है और कोई भी भूमि के किसी भी हिस्से पर अतिक्रमण कर सकता है।”

The post देहरादून में कब हटेगा नदियों के किनारे से अतिक्रमण? first appeared on Khabar Uttarakhand News.





1 comments:

  1. LET THE MADARCHODS DIE

    PAHADI/NEPALIYOU PEE/ BEEHAREEE/RAJPUT/JAT/BOGUS MUSLIMS/ BOGUS CHRISTIANS/ BOGUS SIKHS/GANDU TIBETEANS ALL MADARCHODS !

    LET THEN DROWN AND DIE !

    THEY R FILTH !

    IT IS NATURE AT WORK !

    WHAT IS THE WORTH OF PAHADI/NEPALIS ? ONLY FIT TO SELL BHANG/PIMP THEIR RANDIS. BECOME PANDOO POLCIE OR FOKAD FAUJIS

    THAT IS THE TRUTH !

    THEY R FILTH ! IF THE POPULATION OF UKDIS CUT BY 70% IT WILL BECOME SWITZERLAND.dindooohindoo

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